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अ॒यं मा॒तायं पि॒तायं जी॒वातु॒राग॑मत् । इ॒दं तव॑ प्र॒सर्प॑णं॒ सुब॑न्ध॒वेहि॒ निरि॑हि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayam mātāyam pitāyaṁ jīvātur āgamat | idaṁ tava prasarpaṇaṁ subandhav ehi nir ihi ||

पद पाठ

अ॒यम् । मा॒ता । अ॒यम् । पि॒ता । अ॒यम् । जी॒वातुः॑ । आ । अ॒ग॒म॒त् । इ॒दम् । तव॑ । प्र॒ऽसर्प॑णम् । सुब॑न्धो॒ इति॒ सुऽब॑न्धो । आ । इ॒हि॒ । निः । इ॒हि॒ ॥ १०.६०.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:60» मन्त्र:7 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुबन्धो) हे सुख में बान्धनेवाले कुमार ! (अयं माता-अयं पिता) ये चिकित्सक तुझ रोगी का माता-माता के समान स्नेह करनेवाला, यह पिता-पिता के समान पालन करनेवाला-रक्षण देनेवाला (अयं जीवातुः-आ अगमत्) यह जीवन देनेवाला आया है-आता है (इदं तव प्रसर्पणम्) यह शरीर तो तेरा प्रकृष्टरूप से प्राप्त होने योग्य स्थान है (एहि) आ (निः इहि) निश्चितरूप से प्राप्त हो ॥७॥
भावार्थभाषाः - बालक या कुमार स्नेह में बाँधनेवाला होता है, वह विशेष स्नेहपात्र-दयापात्र होता है। जब वह रोगी हो जाये, तो कोई भी चिकित्सक माता के समान स्नेह करता हुआ या पिता के समान पालन करता हुआ उसके जीवन के लिए चिकित्सा करे और आश्वासन दे कि तू इसी शरीर में स्वस्थ और दीर्घजीवी हो जायेगा ॥७॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुबन्धो) हे सुखे बन्धयितः कुमार ! (अयं माता-अयं पिता अयं जीवातुः-आगमत्) अयं चिकित्सकस्तव रुग्णस्य माता-मातृवत्स्नेहकर्त्ताऽयं पिता-पितृवद्रक्षकः-अयं जीवयिता खल्वागच्छति (इदं तव प्रसर्पणम्) इदं शरीरं तु तव प्रकृष्टरूपेण सर्पणं प्राप्तव्यस्थानमस्ति (एहि) आगच्छ (निरिहि) निश्चितरूपेण प्रापय ॥७॥